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Sunday, January 25, 2009

और ठंड का मौसम हो जाए मजेदार - YOGA


सर्दी के मौसम में सावधानी न बरती जाए तो शरीर कई रोगों का शिकार हो सकता है। इस मौसम में शरीर आंतरिक तापमान के साथ बाह्य तापमान से तालमेल बैठाने का प्रयास करता है। जहां इस तालमेल में असंतुलन हुआ, शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। समय रहते चिकित्सा न की गई तो ये बहुत ही कष्टप्रद साबित हो सकते हैं। इस मौसम में होने वाले सामान्य रोग हैं-सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार, वायरल इनफेक्शन, एन्फ्लूएंजा, सायनोसायटिस, ब्रोंकाइटिस, स्नोफीलिया तथा निमोनिया आदि।
इस मौसम में शरीर को गर्म रखने का प्रकृति का अपना ढंग है। जो आहार हम ग्रहण करते हैं, उससे शरीर में ऊष्मा पैदा होती है। वही ठंड से हमारी रक्षा करती है। यह गर्मी हमारे शरीर के भीतर से खुद ही आती है। सर्दी से बचने का एक अन्य सस्ता और प्राकृतिक उपाय है- योग विद्या। इसके अभ्यास से शरीर में स्वत:स्फूर्त गर्मी उत्पन्न होती है। हमारे ऋषियों ने अनेक प्रयोगों से शरीर में कुछ ऐसी नाडियों की खोज की है, जिनके उद्दीपन से शरीर में प्रबल ऊष्मा या शीत का संचार किया जा सकता है।
नियमित करें उष्ट्रासन
कुछ विशिष्ट आसनों के अभ्यास से रक्त संचालन व श्वसन क्रिया में तीव्रता आती है तथा ग्रंथियों का कार्य संतुलित होता है। इससे शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। ये आसन हैं-पश्चिमोत्तानासन, उष्ट्रासन, राजकपोतासन, बकासन, सर्वागासन, मयूरासन, वृक्षासन, धनुरासन भुजंगासन तथा भूनमन आसन आदि। यहां उष्ट्रासन की विधि प्रस्तुत है:
विधि:
स्थिति-1
1. बज्रासन में बैठ जाएं।
2. घुटनों के बल खडे हो जाएं। दोनों घुटनों के मध्य लगभग एक फुट का अंतर करें।
3. पंजों का निचला भाग जमीन पर तथा तलवा ऊपर की ओर रखें।
4. अब धड को हलका सा दायीं ओर मोडते हुए दांये हाथ को दायीं एडी पर रखें तथा साथ में धड को पीछे की ओर झुकाएं। नितंब तथा कमर के भाग को आगे की ओर दबाएं जिससे रीढ अर्धवृत्ताकार हो जाती है। बांये हाथ को सिर के सीधा ऊपर लंबाई में ऊपर उठाएं। इस स्थिति में आइए। यही क्त्रिया दूसरी तरफ भी दुहराएं। इसकी पांच-पंाच आवृत्तियों का अभ्यास कीजिए।
स्थिति-2
1. उष्ट्रासन की स्थिति-एक में आएं।
2. घुटनों के बल खडे होकर पीछे झुकते हुए दोनों हाथों को एडियों पर रखें। सिर, गर्दन तथा धड को यथासंभव पीछे की ओर झुकाएं तथा कमर एवं नितंब को यथासंभव आगे की ओर दबाएं।
3. इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुककर वापस पूर्व स्थिति में आ जाएं।
सूर्यभेदी प्राणायाम से मिलती है ऊष्मा
हमारे शरीर में 72 हजार नाडियां है। ये मुख्य रूप से तीन नाडियों- इडा, पिंगला तथा सुषुम्ना में अंतर्भुक्त हैं। बायीं नासिका को इडा नाडी भी कहते हैं जो प्रभाव में शीतल होती है। दायीं नासिका को पिंगला नाडी कहते हैं, जो प्रभाव में गर्म होती है। सुषम्ना सम होती है। पिंगला नाडी से सांस धीरे-धीरे अंदर खींचने तथा इडा नाडी से धीरे-धीरे बाहर निकालने से शरीर में गर्मी पैदा होती है। यह क्रिया लगातार दस मिनट तक नियमित रूप से करें ते ठंड के प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं। इसे सूर्यभेदी प्राणायाम कहते हैं।
ऊर्जा का क्षय रोकता है बंध
बंध क्रिया शरीर से निकलने वाली ऊर्जा का क्षय रोक शक्ति को बांधती है। इसमें दक्षता प्राप्त कर ली जाए तो जरूरत के मुताबिक गर्मी पैदा की जा सकती है। इसमें उड्डियान बंध विशेष उपयोगी है।
विधि: किसी आसन में बैठ कर गहरी श्वास-प्रश्वास लें। फिर मुंह से एक गहरी सांस बाहर निकाल सांस को बाहर ही रोक लें। अब दोनों हाथों को कुहनी से सीधा करें। पेट को अंदर की ओर अधिकतम खींचें। इस स्थिति में नाभि रीढ से सट जाती है। जितनी देर हो सके, इस स्थिति में रुकें। जब लगे कि सांस बाहर रोकना संभव नहीं है, पेट सामान्य करें। हाथ ढीला छोड सांस अंदर लें। यह बंध की एक आवृत्ति है। इसकी तीन-चार आवृत्तियां करें।
सीमाएं: उच्च रक्तचाप व हृदयरोग से पीडित लोग इसका अभ्यास न करें।

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