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Saturday, January 24, 2009

विविध कार्यो के लिये भगवन्नामों का जप-स्मरण



कामना सिद्धि के लिये
काम: कामप्रद: कान्त: कामपालस्तथा हरि:।
आनन्दो माधवश्चैव कामसंसिद्धये जपेत्॥
अभीष्ट कामना की सिद्धि के लिये

काम, कामप्रद, कान्त, कामपाल, हरि, आनन्द और माधव- इन नामों का जप करे।
शत्रुविजय के लिये
राम: परशुरामश्च नृसिंहो विष्णुरेव च।
विक्रमश्चैवमादीनि जप्यान्यरिजिगीषुभि:॥
शत्रुओं पर विजय पाने की इच्छावाले लोगों को

राम, परशुराम, नृसिंह, विष्णु तथा विक्रम इत्यादि भगवन्नामों का जप करना चाहिये।
विद्या-प्राप्ति के लिये
विद्यामभ्यस्यता नित्यं जप्तव्य: पुरुषोत्तम:।
विद्याभ्यास करनेवाले छात्र को प्रतिदिन पुरुषोत्तम नाम का जप करना चाहिये।
बन्धन-मुक्ति के लिये
दामोदरं बन्धगतो नित्यमेव जपेन्नर:।
बन्धन में पडा हुआ मनुष्य नित्य ही दामोदर नाम का जप करे।
नेत्र-बाधा-नाश के लिये
केशवं पुण्डरीकाक्षमनिशं हि तथा जपेत्।
नेत्रबाधासु सर्वासु..।
सम्पूर्ण नेत्र-बाधाओं में नित्य-निरन्तर केशव एवं पुण्डरीकाक्ष नामों का जप करे।
भयनाश के लिये
हृषीकेशं भयेषु च।
भय के अवसरों पर उसके निवारण के लिय हृषीकेश का स्मरण करे।
औषध-सेवन के लिये
अच्युतं चामृतं चैव जपेदौषधकर्मणि।
औषध-सेवन के कार्य में अच्युत और अमृत नामों का जप करें।
युद्धस्थल में जाते समय
संग्रामाभिमुखे गच्छन् संस्मरेदपराजितम्।
युद्ध की ओर जाते समय अपराजित का स्मरण करे।
पूर्वादि दिशाओं में जाते समय
चक्रिणं गदिनं चैव शा‌िर्ङ्गणं खड्गिनं तथा।
क्षेमार्थी प्रवसन् नित्यं दिक्षु प्राच्यादिषु स्मरेत्॥
पूर्व आदि दिशाओं में प्रवास करते (परदेश जाते या रहते) समय कल्याण चाहनेवाला पुरुष प्रतिदिन चक्री (चक्रपाणि), गदी (गदाधर), शा‌र्ङ्गी (शा‌र्ङ्गधर) तथा खड्गी (खड्गधर)- इन नामों का स्मरण करे।
सारे व्यवहारों में
अजितं चाधिपं चैव सर्व सर्वेश्वरं तथा।
संस्मरेत् पुरुषो भक्त्या व्यवहारेषु सर्वदा॥
समस्त व्यवहारों में सदा मनुष्य भक्तिभाव से अजित, अधिप, सर्व तथा सर्वेश्वर- इन नामों का स्मरण करे।
दैवी विपत्ति निवारण के लिये
नारायणं सर्वकालं क्षुतप्रस्खलनादिषु।
ग्रहनक्षत्रपीडासु देवबाधासु सर्वत:॥
छींक लेने, प्रस्खलन (लडखडाने) आदि के समय,

ग्रहपीडा, नक्षत्र-पीडा तथा दैवी बाधाओं में

सर्वतोभाव से हर समय नारायण का स्मरण करे।
भय नाश के लिये
अन्धकारे तमस्तीव्रे नरसिंहमनुस्मरेत्॥
अत्यन्त घोर अन्धकार में

डाकू तथा शत्रुओं की ओर से बाधा की सम्भावना होने पर मनुष्य बारम्बार नरसिंह नाम का स्मरण करे।
अगिन्दाह के समय
अगिन्दाहे समुत्पन्ने संस्मरेत् जलशायिनम्।
घर या गाँव में आग लग जाने पर जलशायी का स्मरण करे।
सर्पविष से रक्षा के लिये
गरुडध्वजानुस्मरणाद् विषवीर्य व्यपोहति।
गरुडध्वज नाम के बारम्बार स्मरण से मनुष्य सर्पविष के प्रभाव को दूर कर देता है।
स्न्नान, देवार्चन, हवन, प्रणाम तथा प्रदक्षिणा करते समय
कीर्तयेद् भगवन्नाम वासुदेवेति तत्पर:॥
स्न्नान, देवपूजा, होम, प्रणाम तथा प्रदक्षिणा

मनुष्य भगवत्परायण हो वासुदेव- इस भगवन्नाम का कीर्तन करे।
वित्त-धान्यादि-स्थापन के समय
कुर्वीत तन्मना भूत्वा अनन्ताच्युतकीर्तनम्।
धन-धान्यादि की स्थापना के समय

मनुष्य भगवान् में मन लगाकर अनन्त और अच्युत- इन नामों का कीर्तन करे।
दु:स्वपन्-नाश के लिये
नारायणं शा‌र्ङ्गधरं श्रीधरं पुरुषोत्तमम्।
वामनं खड्गिनं चैव दुष्टस्वपन्े सदा स्मरेत्॥
बुरे सपने आने पर मनुष्य सदा नारायण, शा‌र्ङ्गधर, श्रीधर, पुरुषोत्तम, वामन और खड्गी का स्मरण करे।
महार्णव में
महार्णवादौ पर्यङ्कशायिनं च नर: स्मरेत्॥
महासागर आदि में गिर पडने पर मानव पर्यङ्कशायी (शेषशायी) का स्मरण करे।
सर्वकर्म-समृद्धि के लिये
बलभद्रं समृद्धयर्थ सर्वकर्मणि संस्मरेत्।
समस्त कर्मो में उनकी सम्पन्नता के लिये

मनुष्य बलभद्र- का स्मरण करे।
संतान के लिये
जगत्पतिमपत्यार्थ स्तुवन् भक्त्या न सीदति।
संतान की प्राप्ति के लिये भक्तिपूर्वक जगत्पति (जगदीश या जगन्नाथ) की स्तुति करनेवाला पुरुष कभी दु:खी नहीं होता।
सर्व प्रकार के अभ्युदय के लिये
श्रीशं सर्वाभ्युदयिके कर्मण्याशु प्रकीर्तयेत्॥
सम्पूर्ण अभ्युदय-सम्बन्धी कर्मो में शीघ्रतापूर्वक श्रीश (श्रीपति)- का उच्चस्वर से कीर्तन करे।
अरिष्ट-निवारण के लिये
अरिष्टेषु ह्यशेषेषु विशोकं च सदा जपेत्।
सम्पूर्ण अरिष्टों के निवारण के लिये

सदा विशोक नाम का जप करे।
आँधी-तूफान आदि उपद्रवों के समय
मरुत्प्रपातागिन्जलबन्धनादिषु मृत्युषु।
स्वतन्त्रपरतन्त्रेषु वासुदेवं जपेद् बुध:॥
स्वेच्छा या परेच्छावश अथवा स्वाधीन या पराधीन अवस्था में किसी निर्जन स्थान में पहुँचने पर आँधी-तूफान (ओलावर्षा), अगिन् (दावानल), जल (अगाध जलराशि में निमज्जन) तथा बन्धन आदि के कारण मृत्यु या प्राणसंकट की अवस्था प्राप्त हो तो बुद्धिमान् मनुष्य वासुदेव नाम का जप करे। (ऐसा करने से बाधाएँ दूर हो जाती है।)
कलियुग के दोष-नाश के लिये
तन्नास्ति कर्मजं लोके वाग्जं मानसमेव वा।
यन्न क्षपयते पापं कलौ गोविन्दकीर्तनात्॥
कलियुग में इस जगत् के भीतर ऐसा कोई कर्मज (शारीरिक), वाचिक और मानसिक पाप नहीं है, जिसे मनुष्य गोविन्द नाम का कीर्तन करके नष्ट न कर दे।
शमायालं जलं वह्नेस्तमसो भास्करोदय:।
शान्त्यै कलेरघौस्य नामसंकीर्तनं हरे:॥
जैसे आग बुझा देने के लिये जल और अन्धकार को नष्ट कर देने के लिये सूर्योदय समर्थ है, उसी प्रकार कलियुग की पापराशि का शमन करने के लिये श्रीहरि का नाम-कीर्तन समर्थ है।
पराकचान्द्रायणतप्तकृच्छै्रर्न देहशुद्धिर्भवतीति तादृक्।
कलौ सकृन्माधवकीर्तनेन गोविन्दनामन भवतीह यादृक्॥
कलियुग में एक बार माधव या गोविन्द नाम के कीर्तन से यहाँ जीव की जैसी शुद्धि होती है, वैसी इस जगत् में पराक, चान्द्रायण तथा तप्त कृच्छ्र आदि बहुत-से प्रायश्चित्तों द्वारा भी नहीं होती।
सकृदुच्चारयन्त्येतद् दुर्लभं चाकृतात्मनाम्।
कलौ युगे हरेर्नाम ते कृतार्था न संशय:॥
जो कलियुग में अपुण्यात्माओं के लिये दुर्लभ इस हरि-नाम का एक बार उच्चारण कर लेते हैं, वे कृतार्थ हो गये हैं, इसमें संशय नहीं।

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