-डॉ. विनोद गुप्ता
भोजन का संबंध शरीर से कम और मस्तिष्क से ज्यादा होता है, क्योंकि भूख का अहसास मस्तिष्क को ही होता है पर अधिकांश लोग जरूरत से ज्यादा या जरूरत से कम खाते हैं, जबकि शरीर के स्वस्थ और संतुलित विकास के लिए उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए।भोजन मनुष्य की मूल आवश्यकता है पर वह कब, कैसे और कितना किया जाए, यह एक अहम प्रश्न है।
भोजन का संबंध शरीर से कम और मस्तिष्क से ज्यादा होता है, क्योंकि भूख का अहसास मस्तिष्क को ही होता है पर अधिकांश लोग जरूरत से ज्यादा या जरूरत से कम खाते हैं, जबकि शरीर के स्वस्थ और संतुलित विकास के लिए उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए।भोजन मनुष्य की मूल आवश्यकता है पर वह कब, कैसे और कितना किया जाए, यह एक अहम प्रश्न है।
भोजन का अर्थ महज पेट भरना नहीं, अपितु मन को तृप्ति और शरीर को पोषण देना भी है। जो भी भोजन हम करें, वह पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए।जरूरी नहीं कि पौष्टिक भोजन महँगा ही हो। इसमें हरी सब्जियाँ, दालें, अंकुरित अनाज और मौसमी फलों को शामिल करना चाहिए।
फास्ट फूड से जहाँ तक संभव हो, बचें। भोजन शुद्ध सात्विक हो तो बेहतर। शाकाहार सदैव मांसाहार से बेहतर होता है। प्रकृति ने मनुष्य को शाकाहारी ही बनाया है। भोजन में नमक, मिर्च और मसाले तथा तेल, घी आदि सीमित मात्रा में ही डालें। अधिक तीखा और तरीयुक्त भोजन ठीक नहीं।यदि आप मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, पीलिया आदि बीमारी से ग्रस्त हैं तो भोजन और उसकी मात्रा अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार नियंत्रित कीजिए।
भोजन का संबंध शरीर से कम और मस्तिष्क से ज्यादा होता है, क्योंकि भूख का एहसास मस्तिष्क को ही होता है। पर अधिकांश लोग जरूरत से ज्यादा या जरूरत से कम खाते हैं, जबकि शरीर के स्वस्थ और संतुलित विकास के लिए उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए।आमतौर पर लोग डटकर खाते हैं, यानी जरूरत से डेढ़-दो गुना।
इसके विपरीत, जो लड़कियाँ या महिलाएँ शरीर को छरहरा बनाने के लिए डाइटिंग कर रही होती हैं, वे आधा पेट ही खाती हैं। यह प्रवृत्ति भी गलत है। इससे उनके शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता और वे कमजोर रह जाती हैं। भोजन सदैव नियत समय पर ही करना चाहिए। बिना भूख के भोजन में कोई स्वाद नहीं आता, फिर चाहे वह कितना लजीज ही क्यों न बना हो।दो वक्त के भोजन के मध्य छह से आठ घंटे का अंतर होना चाहिए।
सबेरे 11 बजे तथा सायं 7 बजे भोजन कर लेना चाहिए। अपने सोने के समय से कम से कम दो घंटे पूर्व भोजन अवश्य कर लेना चाहिए। भोजन सदैव ताजा बना हुआ करना चाहिए। बासी भोजन कई बार विषाक्त हो जाता है। कठोर शारीरिक श्रम करने के तुरंत बाद भोजन नहीं, अपितु थोड़ी देर बाद करें। भोजन के तत्काल बाद भी कठोर परिश्रम वाला कार्य न करें।
भोजन कभी हड़बड़ाहट या जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। बड़े-बड़े ग्रास लेकर खाना ठीक नहीं है। यह बेहूदा तो है ही, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उचित नहीं। भोजन सदैव चबा-चबाकर खाना चाहिए। यदि ठीक से चबाकर खाएँगे तो ही शरीर पुष्ट होगा, अन्यथा उसकी सार्थकता नहीं रहेगी।
भोजन कभी हड़बड़ाहट या जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए। बड़े-बड़े ग्रास लेकर खाना ठीक नहीं है। यह बेहूदा तो है ही, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उचित नहीं। भोजन सदैव चबा-चबाकर खाना चाहिए। यदि ठीक से चबाकर खाएँगे तो ही शरीर पुष्ट होगा, अन्यथा उसकी सार्थकता नहीं रहेगी।
भोजन के ठीक पहले व ठीक बाद चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक या आइस्क्रीम का सेवन नहीं करना चाहिए।
भोजन को पचाने के लिए चौबीस घंटों में कम से कम 10-12 गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए। गर्मियों में 15 से 20 गिलास पानी दिन भर में पीना चाहिए। भोजन करने के बाद ब्रश अवश्य करें। यदि भोजन घर से बाहर करना हो तो ठीक से कुल्ले कर लेना चाहिए।
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