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Friday, January 23, 2009

पपीता : विटामिन 'ए' का खजाना


पपीता एक सदाबहार मधुर फल है, जो स्वादिष्ट और रुचिकर होता है। यह हमारे देश में सभी जगह उत्पन्न होता है। यों तो यह बारहों महीने होता है, लेकिन यह फरवरी-मार्च और मई से अक्टूबर के मध्य विशेष रूप से पैदा होता है।
इसका कच्चा फल हरा और पकने पर पीले रंग का हो जाता है। पका पपीता मधुर, भारी, गर्म, स्निग्ध और सारक होता है। इसके सेवन से पित्त का शमन है तथा भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न करता है। रासायनिक तत्व : पपीते में पानी का अंश 89.6 प्रतिशत होता है, जबकि प्रोटीन 0.5 प्रतिशत, चर्बी 0.1 प्रतिशत, कार्बोदित पदार्थ 9 प्रतिशत, क्षार तत्व 0.5 प्रतिशत, कैल्शियम 0.01 प्रतिशत और फॉस्फोरस 0.01 प्रतिशत होता है। इसमें लौह तत्व 0.4 मि.ग्रा./100 ग्राम पाया जाता है।पपीते में विटामिन 'ए' अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, अर्थात्‌ इसमें विटामिन 'ए' 2025 आं.रा.इ./100 ग्राम होता है तथा विटामिन 'सी' 46 से 136 मि.ग्रा./100 ग्राम पाया जाता है।
पपीते में स्थित कुल शर्करा का आधा भाग ग्लूकोज के रूप में और आधा फल शर्करा के रूप में होता है। आम के बाद सबसे अधिक विटामिन 'ए' पपीते में ही होता है। जैसे-जैसे यह पकता जाता है, वैसे-वैसे इसमें विटामिन 'सी' की मात्रा बढ़ती जाती है।वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि कच्चे पपीते में विटामिन 'सी' 40 से 90 मि.ग्रा., अधपके पपीते में 50 से 90 मि.ग्रा. और पके पपीते में 60 से 140 मि.ग्रा. होता है। इसमें शर्करा और विटामिन 'सी' मई से अक्टूबर महीने तक अधिक होता है।
पपीते में विटामिन 'बी1' व 'बी2' भी किंचित मात्रा में होता है।पपीता खाने से धातु संबंधी विकार एवं वीर्य की कमी दूर होती है। यह पाचन शक्ति को सुधारता है तथा पेट के विकारों को दूर करता है।
कच्चा पपीता खाने से कफ-वात की वृद्धि होती है, लेकिन यह अजीर्ण, यकृत विकार, बवासीर आदि रोगों के लिए गुणकारी होता है।
पपीते के रस में 'पॅपेइन' नामक एक तत्व पाया जाता है, जो आहार को पचाने में अत्यंत मददगार साबित होता है। इसमें दस्त और पेशाब साफ लाने का गुण है। जिन लोगों को कब्ज की शिकायत हमेशा बनी रहती है, उन्हें पपीते का नियमित सेवन करना चाहिए।पपीता नेत्र रोगों में हितकारी होता है, क्योंकि इसमें विटामिन 'ए' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसके सेवन से रतौंधी (रात को न दिखाई देना) रोग का निवारण होता है और आँखों में ज्योंति बढ़ती है। पपीता से रक्तशुद्धि, पीलिया रोग का निवारण, अनियमित मासिक धर्म में हितकारी तथा सौंदर्य वृद्धि में सहायक होता है।अन्य उपयोग : कच्चे पपीते को काटकर चेहरे पर रगड़ने से चेहरे के कील, कालिमा, मैल व अन्य दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं। इससे त्वचा में निखार आता है और वह कोमल व लावण्ययुक्त हो जाती है।
चेहरे पर मुँहासे हों तो कच्चे पपीते का गूदा मलें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे और त्वचा में निखार आ जाएगा।
* त्वचा रोगों के लिए तो पपीता एक उत्तम औषधि है। अगर आप खाज-खुजली, दलद आदि से परेशान हों तो कच्चे पपीते का दूध निकालकर उन पर लगाएँ। इससे खाज-खुजली से छुटकारा मिलेगा और त्वचा कोमल व चमकीली हो जाएगी।
* कृमि रोग से छुटकारा पाने के लिए कच्चे पपीते का रस पीना चाहिए। यह कृमिनाशक दवा है। यकृत के लिए भी यह लाभदायक होता है। जिन स्त्रियों का मासिक धर्म अनियमित हो, उन्हें कच्चे पपीते का रस बनाकर कुछ दिनों तक नियमित पीना चाहिए। इससे मासिक स्राव साफ और नियमित हो जाएगा।* पपीते में पाया जाने वाला पॅपेइन तत्व पाण्डुरोग तथा प्लीहावृद्धि में उपयोग सिद्ध होता है।
पपीते में आर्जिनाइन नामक एक तत्व पाया जाता है, जो स्त्रियों का बाँझपन दूर करने में सहायक होता है। पपीते का रस 200 मि.ग्रा. से 300 मि.ली. तक सेवन करना चाहिए।* पपीते में पाए जाने वाले विविध एंजाइमों के कारण कैंसर रोग से बचाव होता है, विशेषकर आंतों के कैंसर से।
* पेट में कीड़ें हों तो कच्चे पपीते का रस 20 ग्राम सुबह-शाम पीएं। इससे पेट के कीड़ों का नाश हो जाता है।
पपीता नेत्र रोगों में हितकारी होता है, क्योंकि इसमें विटामिन 'ए' प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसके सेवन से रतौंधी (रात को न दिखाई देना) रोग का निवारण होता है और आँखों में ज्योंति बढ़ती है।
* यकृत या प्लीहावृद्धि में कच्चे पपीते को जीरा, काली मिर्च तथा सेंधा नमक का चूर्ण छिड़क कर खाने से लाभ होता है।
* सेंधा नमक, जीरा और नीबू का रस मिलाकर पपीते का नियमित सेवन करने से मंदाग्नि, कब्ज, अजीर्ण तथा आंतों की सूजन में काफी लाभ होता है।
* दाँतों से खून जाता हो या दाँत हिलते हों तो पपीता खाने से ये दोनों शिकायतें दूर हो जाती हैं।
* बवासीर में प्रतिदिन सुबह खाली पेट पपीता खाएँ, इससे कब्ज दूर होगी। शौच साफ होगा और बवासीर से छुटकारा मिलेगा, क्योंकि बवासीर का मूल कारण कब्ज ही है।

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