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Thursday, January 22, 2009

टुच्चापन...-चिंतन



टुच्चापन...जुम्मन और शकील बहुत अच्छे दोस्त थे। साथ पढ़े, साथ खेले और साथ बड़े भी हुए। किस्मत से दोनों को एक ही ऑफ़िस में नौकरी भी मिली और ज़िंदगी मज़े में गुज़रने लगी... दोनों का अक्सर एक-दूसरे के घर आना-जाना लगा रहता।जुम्मन जब भी कभी शकील के पास जाता, शकील बड़े शान से अपना सीना फुला कर घरवालों से अपने दोस्त की तारीफ़ करता। शकील अक्सर इमोशनल होकर अपने बीवी-बच्चों से कहता, "अगर मैं कभी मर भी जाऊं तो फ़िक्र मत करना। मेरे पीछे मेरा भाई जुम्मन तुम सबका ख़्याल रखेगा। मेरे जाने के बाद अगर तुम्हें कभी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो, तो बेझिझक जुम्मन से कहना।" जुम्मन भी अपने दोस्त की बातों पर हामी भरता, लेकिन उसका साथ छूटने का डर उसे अंदर से हिला देता। पर एक रोज़ वही हुआ, जो बात शकील अक्सर मज़ाक में कहता था। महज़ एक दिन की बीमारी के बाद उसकी जान चली गई। मोहल्ले में मातम पसर गया। शकील के जाने की ख़बर जुम्मन पर बिजली बन कर गिरी। वो रोता-पिटता अपने दोस्त के घर पहुंचा। ड्राइंग रूम में शकील की लाश पड़ी थी। घर में कोहराम मचा था। उसकी बीवी सायरा हर दोस्त या रिश्तेदार को देखते ही बेहोश हो जाती। जुम्मन ने हिम्मत कर सायरा का हाल पूछा और अचानक उसे न जाने क्या सूझी, अपने कुर्ते से पांच सौ रुपए का एक नोट निकाल कर उसने सायरा के हवाले कर दिया। कहा, "हिम्मत से काम लो, सब ठीक हो जाएगा।" अब सायरा अपने शौहर के सबसे अच्छे दोस्त के टुच्चेपन से हैरान थी...

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