Sent by- Shruti Aggarwal
अगर मैं मुंबई में हूं तो ऑफिस से लौटते वक्त अपने दोस्त बलजीत परमार को हर रोज उनके घर ड्रॉप करता हूं। उनका घर जुहू में अमिताभ बच्चन के घर के बहुत करीब है। इस तरह मुझे यह अहसास होता है कि मैंने शहर में बढ़ते प्रदूषण के स्तर में कुछ कमी तो की।
हालांकि उन्हें ड्रॉप करने का सिर्फ यही एक कारण नहीं है। उन्हें जुहू की चांद सोसायटी पर उतारते वक्त मुझे कई बार अमिताभ बच्चन के दर्शन भी हो जाते हैं। कम से कम पांच में से तीन बार तो ऐसा होता ही है। चांद सोसायटी एक मध्य वर्ग सोसायटी है, जिसके ग्राउंड फ्लोर पर अमिताभ बच्चन की निजी सचिव रोजी सिंह भी रहती हैं। प्रत्येक रात नौ से दस के बीच अमिताभ बच्चन स्वयं कार से उन्हें घर छोड़ने आते हैं। वह तब तक बिल्डिंग के बाहर रुकते हैं, जब तक कि रोजी अपने घर में प्रवेश नहीं कर जाती।
रोजी, अमिताभ बच्चन की बेहद विश्वसनीय सहयोगी हैं और उनके साथ लंबे समय से हैं। यहां तक कि अमिताभ बच्चन का जब खराब दौर चल रहा था तब भी रोजी ने उनका साथ नहीं छोड़ा था। इससे मुझे वर्षो पूर्व कोलकाता की एक घटना याद आ गई। उस रात अमिताभ बच्चन ने वहां पार्टी दी थी। मैंने रात के लगभग दो बजे उन्हें अपनी एक साथी पत्रकार को रूम तक छोड़कर आते देखा। वह एक पंच सितारा होटल था और हम सभी पार्टी में मशगूल थे।
इस पर उस महिला पत्रकार ने अमिताभ बच्चन से पूछा कि पंच सितारा होटल के सुरक्षित माहौल में भी वह उन्हें कमरे तक छोड़ने क्यों आए हैं? इस पर उनका जवाब था, ‘यह सामान्य शिष्टाचार है। अगर आप मेजबान हैं तो रात हो जाने पर महिला अतिथि को छोड़ना आपकी जिम्मेदारी है।’ इससे मुझे उनसे जुड़ी एक और याद ताजा हो आई।
एक यात्रा के दौरान जिसमें महिला पत्रकारों की संख्या पुरुष पत्रकारों से ज्यादा थी, अमिताभ बच्चन ने अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ उन्हें एक सुरक्षा घेरे में ले लिया था। संभवत: यही वजह है कि वह आज भी महिलाओं के चहेते बने हुए हैं। फंडा यह है कि शिष्टाचार के बल पर आप सभी से त्वरित सम्मान पाने के हकदार हो जाते हैं। यही नहीं, इससे लोकप्रियता में भी इजाफा होता है।
by- N . Raghuraman
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Sunday, February 22, 2009
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