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Sunday, March 15, 2009

ध्यान करिए और खुश रहिए


Contributed By - Sumit Aggarwal

मैं इन दिनों स्वामी बोधानंद लिखित पुस्तक ‘द गीता एंड मैनेजमेंट’ पढ़ रहा हूं। इसके अलावा पिछले सप्ताह मुंबई में मैंने ब्रह्मकुमारी द्वारा प्रस्तुत एक रूसी बैले के कार्यक्रम में हिस्सा भी लिया। इसी सप्ताह मेरी पत्नी श्री श्री रविशंकर के आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े एक कार्यक्रम में भाग लेने गई। उक्त तीन अलग-अलग कार्यक्रमों में एक समानता सामने आई। कोई एक ऐसी चीज है, जो इन्हें आपस में जोड़ने का काम करती है।
किताब के मुताबिक ध्यान इस व्यस्त जिंदगी में किसी इंसान को शांतचित्त और रचनात्मक बने रहने में मदद करता है। हर रोज ध्यान करने वाले न सिर्फ अच्छा स्वास्थ्य हासिल करते हैं, बल्कि उनका दिमाग भी तेज चलता है। इससे भी महत्वपूर्ण उनके भीतर अपने आसपास के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहने की इच्छी बलवती होती जाती है।
इस किताब में आगे बताया गया है कि नियमित ध्यान करने वाला कभी थकता भी नहीं है, हमेशा प्रेरित रहता है और लगातार किए जा रहे काम पर अपना फोकस बनाए रखता है। नियमित रूप से सुबह-शाम सिर्फ बीस मिनट ध्यान करने से ही अपेक्षित बदलाव आ सकते हैं। ब्रह्मकुमारी के कार्यक्रम में एक किस्से के जरिये बताया गया कि किस तरह हम अपने मन-मस्तिष्क पर बाहरी घटनाओं का प्रभाव पड़ने से रोक सकते हैं।
इसमें बताया गया कि नियमित रूप से कुछ घंटे राजयोग करने से खुशहाली हासिल की जा सकती है। दिन के चौबीस घंटे खुश रहना तो विद्यमान हालातों में संभव नहीं है, अत: राजयोग के जरिए पहले पहल कुछ घंटे खुशी हासिल कर सकते हैं। धीरे-धीरे यह अवधि बढ़ाई जा सकती है। वहां बताया गया कि अपने दिमाग पर नियंत्रण स्थापित कर और उसे दुनियावी बुराईयों की तरफ भटकने से रोककर हम ऐसा संभव कर सकते हैं।
चूंकि मेरी पत्नी श्री श्री रविशंकर के कार्यक्रम में भाग लेकर आई थीं, तो मैंने उनमें कई सकारात्मक बदलाव देखे। मैंने पाया कि अब वह हमारी किशोरवय बेटी को आसानी से संभाल सकती हैं।
जिन घरों में किशोरवय बच्चे होते हैं, वह इस बात को आसानी से समझ सकते हैं। फंडा यह है कि उक्त तीनों घटनाओं से पता चलता है कि नियमित ध्यान करने वाला कभी थकता नहीं है, हमेशा प्रेरित रहता है और वह पूर्णता का अहसास कर खुश भी रहता है। इसे एक बार करके देखने में क्या हर्ज है! आखिर इस कवायद से सिर्फ सकारात्मक चीजें ही तो मिलने वाली हैं, वह भी बगैर किसी साइड इफैक्ट के।


By - एन. रघुरामन



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